Friday 18 March 2016

राम तें बड़ नाम

साधन नाम-सम नहिं आन। 
जपत सिव-सनकादि, सारद-नारदादि सुजान॥ 
नाम के बल मिटत भीषन असुभ भाग्य-बिधान। 
नाम-बल मानव लहत सुख सहज मन-‌अनुमान॥ 
नाम टेरत टरत दारुन बिपति, सोक महान। 
आर्त करि, नर-नारि, ध्रुव सब रहे सुचि सहिदान॥ 
नाम के परताप तें जल पर तरे पाषान। 
नाम-बल सागर उलाँघ्यो सहज ही हनुमान॥ 
नाम-बल संभव सकल जे कछु असंभव जान। 
धन्य ते नर, रहत जिनके नाम-रट की बान॥ 
पाप-पुंज प्रजारिबे-हित प्रबल पावक-खान। 
होत छिन महँ छार, निकसत नाम जान-‌अजान॥ 
नाम-सुरसरि में निरंतर करत जे जन न्हान। 
मिटत तीनों ताप मुख नहिं होत कबहुँ मलान॥ 
नाम-‌आश्रित जनन के मन बसत नित भगवान। 
जरत खरत कु-वासना सब तुरत लज्जा-मान॥ 
नाम जीवन, नाम अमरित, नाम सुख को थान। 
नाम-रत जे नाम-पर ते पुरुष अति मतिमान॥ 
नाम नित आनंद-निरझर, अति पुनीत पुरान। 
मुक्त सत्वर होत जे जन करत सादर पान॥ 
नाम जपत सुसिद्ध जोगी बनत समरथवान। 
नाम तें उपजत सु-भगति, बिराग सुभ बलवान॥ 
नाम के परताप दीखत प्रकृति-दीप बुझान। 
नाम-बल ऊगत प्रभामय भानु तव-ज्ञान॥ 
नाम की महिमा अमित, को सकै करि गुन-गान। 
राम तें बड़ नाम, जेहि बल बिकत श्रीभगवान॥ 

पदरत्नाकर 

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