श्याम तेरी तस्वीर सिरहणे रखकर सोते है
यही सोचकर अपने दोनों नैण भिगोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
नन्हें~नन्हें हाथो से आकर हिलाएगा
फिर भी नींद ना टूटे तो मुरली मधूर बजायेगा
जाने कब आ जाए हम रुक~रुक कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
अपनापन हो अंखियों में होठो पे मुस्कान है
ऐसे मिलना जैसे की जन्मों की पहचान है
इसके खातिर अंखियाँ मसल~मसल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
कभी~कभी घबराते है क्या हम इसके हक़दार
है
जितना मुजको प्यार है तुमसे क्या तुमको
भी हमसे भी उतना प्यार है
यही सोच के करवट हम बदल~बदल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
जाने कब आ जाये हम आँगण रोज बुहारते है
मेरे इस छोटे से घर का कोना~कोना संवारते है
जिस दिन नहीं आते हो हम जी भरकर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
हर आहट पर लगता है आया वाही मेहमान है
जिससे मिलने खातिर मेरे अटके हुए प्राण है
निकल ना जाये कलेजा हम संभाल~संभाल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
एक दिन ऐसी नींद खुले तेरा दीदार हो
बनवारी फिर हो जाये ये अंखियां बेकार हो
बस इस दिन के खातिर हम दिन भर रोते हैं...
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
श्याम तेरी तस्वीर सिराहणे रखकर सोते है
यही सोचकर अपने दोनों नैण भिगोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
***※═❖═▩ஜ۩.۞.۩ஜ▩═❖═※***
यही सोचकर अपने दोनों नैण भिगोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
नन्हें~नन्हें हाथो से आकर हिलाएगा
फिर भी नींद ना टूटे तो मुरली मधूर बजायेगा
जाने कब आ जाए हम रुक~रुक कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
अपनापन हो अंखियों में होठो पे मुस्कान है
ऐसे मिलना जैसे की जन्मों की पहचान है
इसके खातिर अंखियाँ मसल~मसल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
कभी~कभी घबराते है क्या हम इसके हक़दार
है
जितना मुजको प्यार है तुमसे क्या तुमको
भी हमसे भी उतना प्यार है
यही सोच के करवट हम बदल~बदल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
जाने कब आ जाये हम आँगण रोज बुहारते है
मेरे इस छोटे से घर का कोना~कोना संवारते है
जिस दिन नहीं आते हो हम जी भरकर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
हर आहट पर लगता है आया वाही मेहमान है
जिससे मिलने खातिर मेरे अटके हुए प्राण है
निकल ना जाये कलेजा हम संभाल~संभाल कर रोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
एक दिन ऐसी नींद खुले तेरा दीदार हो
बनवारी फिर हो जाये ये अंखियां बेकार हो
बस इस दिन के खातिर हम दिन भर रोते हैं...
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
श्याम तेरी तस्वीर सिराहणे रखकर सोते है
यही सोचकर अपने दोनों नैण भिगोते है
कभी तो तस्वीर से निकलोगे कभी तो मेरे श्याम पिघलोगे...
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