बरत करो रे भई एकादशी...राजा राम जी के नाम बिन मुक्ति कैसी...
उजला~उजला कपड़ा पहने...पर नारी चित्त जो घर सी...
इस करनी का नर होसी रे कुकरो...गलियारों घुसतो फिरसी...
पगड़ी बांध सभा में बैठो...झूठी सांची जो भरसी...
इस करनी का नर होसी रे कांगलो...कांय~कांय करतो फिरसि...
मार पगां कचेड्या बैठ्या...तेरी मेरी जो करसी...
इस करनी का नर होसी रे सरपलो...पेट पलाण्या वो फिरसि...
अपने पति को छोड़ नर वो जो पर पुरसा पर चित्त धरसि...
इस करनी की नारी होसी रे कूकरी घर~घर डण्डा वो खासी...
गऊ को दान जमीन का दान...सोने का दान नर जो करसी...
इस करनी का नर होसी रे...राणाजी हाथी पर बैठ्यो फिरसि...
सत से चले मत से बोले...हर की पैड़ी वो चढ़सी...
कहत कबीर सुणों भई साधो...सातो पीढ़ी वो तिरसि...
बरत करो रे भई एकादशी...राजा रामजी के नाम बिन मुक्ति किसी...
उजला~उजला कपड़ा पहने...पर नारी चित्त जो घर सी...
इस करनी का नर होसी रे कुकरो...गलियारों घुसतो फिरसी...
पगड़ी बांध सभा में बैठो...झूठी सांची जो भरसी...
इस करनी का नर होसी रे कांगलो...कांय~कांय करतो फिरसि...
मार पगां कचेड्या बैठ्या...तेरी मेरी जो करसी...
इस करनी का नर होसी रे सरपलो...पेट पलाण्या वो फिरसि...
अपने पति को छोड़ नर वो जो पर पुरसा पर चित्त धरसि...
इस करनी की नारी होसी रे कूकरी घर~घर डण्डा वो खासी...
गऊ को दान जमीन का दान...सोने का दान नर जो करसी...
इस करनी का नर होसी रे...राणाजी हाथी पर बैठ्यो फिरसि...
सत से चले मत से बोले...हर की पैड़ी वो चढ़सी...
कहत कबीर सुणों भई साधो...सातो पीढ़ी वो तिरसि...
बरत करो रे भई एकादशी...राजा रामजी के नाम बिन मुक्ति किसी...
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