Saturday 20 February 2016

जय जय हरि-हृदया वृषभानु-सुकुमारी॥

जय जय हरि-हृदया वृषभानु-सुकुमारी॥
बिजुरि बरन गौर बदन, सोहत तन नील बसन,
बिंब अधर मधुर हँसन, माधव-मन-हारी।
सुषमामय अंग-‌अंग, लि‌एँ मधुर सखिन संग,
बिहरत भरि मन उमंग प्रियतम-सुखकारी॥

लोक-बेद-लाज त्यागि, त्यागि स्वजन महाभाग,
हरि-हित गावत बिहाग, डोलत मतवारी।
प्रियतम-सुख-जल-सुमीन, निज-सुख-बांछा बिहीन,
गुननिधि, पै बनी दीन, राधिका दुलारी॥

जय जय श्री राधे! जय जय श्री राधे! जय जय श्री राधे!

"पद रत्नाकर "

श्रद्धेय भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी
गीताप्रेस गोरखपुर भारत पुस्तक कोड-५०

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