Tuesday 2 February 2016

पद-रत्नाकर

! हे नाथ !
प्रभो! तुम्हारी सहज कृपा पर मुझको सदा रहे विश्वास।
कभी न हो संदेह, हृदय तुमसे हो नहीं कदापि निराश॥
तुम ही एक त्राणकर्ता हो, तुम अनन्य शरणद भगवान।
योग-क्षेम तुम्हीं हो मेरे, भूले कभी न मन यह भान॥
रहूँ तुम्हारे चरण-देशमें, नहीं कभी जाऊँ अन्यत्र।
सदा तुम्हारी रक्षकताकी हो अनुभूति मुझे सर्वत्र॥
रहूँ तुहारे बलसे, हे प्रभु! सदा सभी विधि मैं बलवान।
पाप-ताप छू सकें न मुझको, कभी न मनमें हो अभिमान॥
सदा विनम्र रहूँ चरणों में, सदा तुम्हारा लूँ शुचि नाम।
सदा सभी में नाथ! तुहारे दर्शन कर पाऊँ अभिराम॥
(पद-रत्नाकर)

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