Thursday 8 September 2016

वृषभान भवन आनँद अति छायौ

आजु वृषभान भवन आनँद अति छायौ।
राधा अवतार भयौ, सब कौ मन भायौ॥
दुंदुभि नभ लगीं बजन, सुमन लगे बरसन।
धा‌ए पुरबासी सब, करन कुँवारि-दरसन॥

मंगल उत्साह मुदित नारि सकल गावत।
लै-लै कमनीय भेंट कीर्ति-महल आवत॥
नचत वृद्ध-तरुन-बाल, भ‌ए सब नचनियाँ।
तिनके मुख धन्य होन प्रगटी रागिनियाँ॥

राधा कौं जन्म जानि प्रेमी सब धा‌ए।
प्रेम सुधा बरसन की आस मन लगा‌ए॥
राधा बिनु हरै कौन मुनि-मन-हर-मन कौं।
प्रगटै बिनु पात्र को आनँद-रस-घन कौं॥

बरसैगो कृष्णघन पाय पात्र राधा।
रस-धारा पावन तब बहैगी बिनु बाधा॥
आ‌ए तहँ विविध बेष सुर-मुनि-रिषि भव-‌अज।
दरसन कौं, परसन कौं कुँवारि-चरन-पंकज॥

आ‌ए नंद-जसुमति अति चित में हरषा‌ए।
बिबिध रत्न मुकता मनि भेंट संग ला‌ए॥
प्रसव-घर पधारि महरि कुँवारि लेत कनियाँ।
चूमत अति लाड़-चाव जात बलि निछनियाँ॥

उभय मातु मिलीं अमित स्नेह तन-मन तें।
कहि न जाय मिलन-प्रीति-रीति लघु बचन तें॥
नंद वृषभानु मिले हिय सौं हिय ला‌ए।
छायौ चहुँ ओर मोद, गोद नँद भरा‌ए॥

जय जय श्री राधे! जय जय श्री राधे! जय जय श्री राधे!

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