Tuesday 27 September 2016

जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता।

जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता।
पढों क्यों न गीता, सुनो क्यों न गीता॥
ये हड्डियों का पिंजरा, कभी गिर पड़ेगा।
निकल जायेगा दम, तो फिर क्या करेगा॥
उठा ले चलेंगे, लगेगा पलीता।
पढों क्यों न गीता, सुनो क्यों न गीता॥
तुँ किस देश का है, कहाँ बस रहा है।
विषय वासनाओं में, क्यों फस रहा है॥
मानुष जन्म पाके, न राह जाये रीता।
पढों क्यों न गीता, सुनो क्यों न गीता॥
जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता।
पढों क्यों न गीता, सुनो क्यों न गीता॥
तू है अंश ईश्वर का, मालिक वो तेरा।
बुलाता तुझे कहके, मेरा तू मेरा।
उसी की शरण ले ले, हो जा नचीता।
जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता॥
बदलता है उसका ना, पकड़ो सहारा।
कभी न बदलता है, वो ही तुम्हारा।
वहीँ कृष्ण राधा, वहीँ राम सीता।
जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता।
जनम जाय बीता, पढों क्यों न गीता।
पढों क्यों न गीता, सुनो क्यों न गीता॥

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