Wednesday 13 July 2016

इस योग हम कहा है..

इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...
फिर भी मना रहे है...शायद तू मान जाये...

जब से जनम लिया है...विषियों ने हमको घेरा...
छल और कपट ने डाला...इस भोले मन पे डेरा...
सुदबुद्धि को अहम् ने हरदम रखा दबाये...
इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...

जग में जहां भी देखा बस एक ही चलन है...
एक दूसरे के सुख पे खुद को बड़ी जलन है...
कर्मो का लेखा जोखा कोई समज न पाए...
इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...

निस्चय ही हम पतित है लोभी है स्वार्थी है...
तेरा नाम जब पुकारे माया पुकारती है...
सुख भोगने की इच्छा कभी तृप्त हो ना पाए...
इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...

जब कुछ ना कर सके तो तेरी शरण में आए...
अपराध मानते है झेलेंगे सब सजाएँ...
बस दरस तू दिखादे कुछ और हम न चाहें...
इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...

इस योग हम कहा है...कान्हा तुम्हें मनायें...
फिर भी मना रहे है...शायद तू मान जाये...

***※═❖═▩ஜ۩.۞.۩ஜ▩═❖═※***
󾭩󾕓 󾬢 Զเधे 󾕓 Զเधे 󾬢 󾕓󾭩

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