*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*
जनम मरण में भटकत भूल्यो,
कबहूँ न सुरति करी प्रभु तेरी।
अबकी बेर मेरा संकट काटो,
मेटो जनम-मरण की फेरी॥
*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*
हूँ गुणहीन कछु नहीं लायक,
फिर भी मन अभिमान भर् योरी।
अपनो जानि दया करो दाता,
होऊँ मैं चरण-शरण प्रभु तेरी॥
*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*
चाह नहीं है भोग्य भोग की,
चाह नहीं प्रभु स्वर्ग लोक की।
चाह भरी है तुम दर्शन
भर दो नाथ दयासे झोरी॥
*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*
आश तुम्हारे चरण कमल की,
लेकर आयो मैं द्वार तुम्हारे।
टुक-टुक निरखूँगा द्वार तुम्हारा,
चाहे करो प्रभु कितनी देरी ॥
लिया सहारा एक तुम्हारा,
तुम हो दीन के हितकारी।
कर किरपा उस राह पे डारो,
निशदिन तेरी लगाऊँ मैं फेरी॥
*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*
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