Monday 23 January 2017

*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

जनम मरण में भटकत भूल्यो,
कबहूँ न सुरति करी प्रभु तेरी।

अबकी बेर मेरा संकट काटो,
मेटो जनम-मरण की फेरी॥

*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

हूँ गुणहीन कछु नहीं लायक,
फिर भी मन अभिमान भर् योरी।

अपनो जानि दया करो दाता,
होऊँ मैं चरण-शरण प्रभु तेरी॥

*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

चाह नहीं है भोग्य भोग की,
चाह नहीं प्रभु स्वर्ग लोक की।

चाह भरी है तुम दर्शन
 भर दो नाथ दयासे झोरी॥

*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

आश तुम्हारे चरण कमल की,
लेकर आयो मैं द्वार तुम्हारे।

टुक-टुक निरखूँगा द्वार तुम्हारा,
चाहे करो प्रभु कितनी देरी ॥

लिया सहारा एक तुम्हारा,
तुम हो दीन के हितकारी।

कर किरपा उस राह पे डारो,
निशदिन तेरी लगाऊँ मैं फेरी॥

*दीन दयाल शरण मैं तेरी*
*तुम बिन नाथ कौन गति मेरी।*

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