Friday 22 April 2016

घनश्याम की शोभा


मेरे घनश्याम की जुल्फे अजब नागिन-सी काली है।
किसी के दिल को डसने के लिये मानों ये पाली हैं। ।
अजायब चाँद सा" मुखडा, दमकती खोर केशर की ।
सुहाई नील- क्जों से कपोलों की गुलाली है । ।
नुकीली नासिका थिरकन गजब बेसर के मोती की ।
लिये बैठा मनो: शुक चोंच मे: मुक्ता की डाली है ।
निगाहे शान शमसीरें हमारे दिल की कातिल हैं ।
वहीँ समझेगा इनकी मार जिसने पीर पाली है ।
दुपट्टा जर्द लासानी जरी न्क्काश्दारी का ।
नहीं कुछ तोर रखती जो कमर पर पेंच डालीं है ।
बनी बनमाल फूलों की फबी है जाके कदमों तक ।
फिसल पड़ती है आँखें भी छटा ऐसी निराली है ।
कदम की छाँह के नीचे खडे बाँकी अदाँ से हैं ।
मधुर मुरली के रद्गधों से सुरीली धुन सम्हाली है ।
यही नखरे भरी झांकी हमारे दिल में आ बैठे ।
तो भर जाये तेरा जलवा जो दिल में जगह खाली है।

No comments:

Post a Comment