Thursday 23 June 2016

बन जाऊँ लीलाभूमि तुम्हारी प्यारी।

हर लो प्रभु ! मेरी भोग-दासता भारी ।
कर लो मुझको 'निज दास' नाथ अघहारी ॥
मैं रटूँ तुम्हारा नाम नित्य भयहारी ।
मैं सेवा नित तन-मनसे करूँ तुम्हारी ॥
मिट जायँ काम-आसक्ति समस्त मुरारी ।
हट जाय मोह-ममताकी माया सारी ।।
रह जायँ न मद अभिमान मान मदहारी ।
हो उदय सहज शुचि दैन्य विनय बनवारी ॥
खुल जायँ ज्ञानके नेत्र दिव्य तमहारी ।
दीखे तुम्हरी लीला सर्वत्र सदा सुखकारी ।।
मैं देखूँ सबमें सदा तुम्हें मनहारी।
मैं सबका सुख-हित करूँ सर्वहितकारी ॥
बन जाऊँ लीलाभूमि तुम्हारी प्यारी ।
तुम खेलो फिर मनमाने लीलाकारी ॥
रह जाय न कुछ भी सत्ता मेरी न्यारी ।
तुम ही लीला, लीलामय सभी विहारी ॥

गीता प्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित 'भगवन्नाम-महिमा और प्रार्थना-अंक (कल्याण )से।

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