Tuesday 10 May 2016

सुख दुःख का साथी हमारा...

सुख दुःख का साथी हमारा...
हम सब का पालनहारा...
सेठों में सेठ निराला...
ये राजाकटरा वाला...
जो आ जाता शरण में इनकी...
वो पा जाता मुरादें मन की...

भोर भये मंगला के दर्शन हैं पाते...
मंगला के दर्शन करके श्रृंगार की झांकी पाके...
मन हो जाता है गद गद कर राज भोग के दर्शन...
जो आ जाता शरण में इनकी...
वो पा जाता मुरादें मन की...

उत्थापन के दर्शन कर भक्त धन्य हो जाते...
सन्ध्या आरती के दिवाने भक्त वही रुक जाते...
सतसंग किर्तन भजनों से रंग जाता है प्यारे शयन में...
कहते हैँ भक्तों की सुनने आते हैं वहाँ पे मोहन...
जो आ जाता शरण में इनकी...
वो पा जाता मुरादें मन की...

दर पे इसके तू भी आजा मेरे प्यारे...
आके अपने मन की इसे सुना तू प्यारे...
क्यूँ इधर उधर तू कहते फिरता है मन की बातें...
ये सेठ "" अनोखा "" बैठा तेरी सब बातें सुनने...
जो आ जाता शरण में इनकी...
वो पा जाता मुरादें मन की...

सुख दुःख का साथी हमारा...
हम सब का पालनहारा...
सेठों में सेठ निराला...
ये राजाकटरा वाला...
जो आ जाता शरण में इनकी...
वो पा जाता मुरादें मन की...

( तर्ज ::: सूरज कब दूर गगन से...)

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