Tuesday 10 May 2016

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।
गोविन्द नाम लेकर, गोपाल नाम लेकर, ही प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

श्रीगंगा जी का तट हो, यमुना का वंशीवट हो ।
मेरा सावरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

श्रीवृन्दावन का स्थल हो, मेरे मुख मुख में तुलसीदल हो ।
विष्णु चरण का जल हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

संमक्ष सावरा खड़ा हो, मुरली का सुर भरा हो ।
तिरछा चरण धरा हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

सर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पे काली लट हो ।
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

केसर तिलक हो आला, मुख चन्द्र सा उजाला ।
डालूं गले में माला, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

कानों जड़ाऊ बाली, लटके लटी हों काली ।
देखूं छटा निराली, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

पीताम्बरी कसी हो, होठों पे कुछ हंसी हो ।
छवि यह ही मन बसी हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

पंचरंगी कांछ्नी हो, पट पीट से तनी हो ।
मेरी बात सब बनी हो, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

पग धो तृषा मिटाऊँ, तुलसी का पत्र पाऊं ।
सर चरण राज लगाऊँ, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

कान्हा अवश्य आना, राधा को साथ लाना ।
दर्शन मुझे दिखाना, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

जब कंठ प्राण आवे, कोई रोग न सतावे ।
यम दरस न दिखावे, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

मेरे प्राण निकले सुख से, तेरा नाम निकले मुख से ।
बच जाऊँ घोर दुःख से, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम! भूल जाना ।
मुरली की धुन सुनाना, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

एक दास की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी ।
आगे तुम्हारी मर्जी, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

सुधि होवे ना ही तन की, तैयारी हो गमन की ।
लकड़ी हो ब्रज के वन की, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

यह नेक सी अरज है, मानों तो क्या हरज है ।
कुछ आपका फरज है, जब प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

गोविन्द नाम लेकर, गोपाल नाम लेकर, ही प्राण तन से निकले ।।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले ।

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󾭩󾕓 󾬢 Զเधे 󾕓 Զเधे 󾬢 󾕓󾭩

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